चाय का जहर
चाय की राक्षसी माया आजकल सचमुच अपरम्पार दिखती है। आज योगी, यति, साधु-सन्त, अमीर-गरीब, विद्वान-मूर्ख, गंवार-शहरी सब इसके अन्ध भक्त बन चुके हैं। गाँव- गाँव, देहात-देहात में इसका प्रचार है। और देशों की बात हम नहीं जानते मगर हमारे देश भारत में जहाँ कभी दूध, दही और अमृत तुल्य मठा की नदियाँ बहती थी वहाँ आज काली-कलूटी विष तुल्य चाय का समुद्र ठांठे मार रहा है। आज देश के गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति के घर अतिथियों का स्वागत क्षीर, शिखरिणी तक्र एवं शरबत की जगह विषमयी चाय से किया जाता है। सुबह उषः पान की जगह बैट-टी का सेवन करना उत्तम समझते हैं।
चाय के कुछ अन्ध-भक्त यह दलील पेश करते हैं और कहते हैं, क्या करें साहब, दूध आजकल हो गया है मंहगा अतः यदि उसकी जगह इस सस्ती चाय का भी प्रयोग न करें तो क्या करें। माना कि दूध महंगा है और चाय सस्ती, तो क्या अमृत की जगह विष का ग्रहण करना बुद्धिमानी का काम है ? चाय की माया के वशीभूत होकर चाय के भक्त चाय के सेवन से आनन्द, शान्ति एवं स्फूर्ति की प्राप्ति होना बताते हैं और कहते हैं कि चाय पीने से थकावट और सुस्ती दूर होती है, पर काश उन्हें यह पता होता कि चाय पीने के बाद जो आनन्द शांति एवम् स्फूर्ति की अनुभूति होती है वह क्षणिक और केवल भुलावा देने के लिए ही होती है मगर उसका अन्त और परिणाम विष तुल्य होता है।
चाय पीन के बाद जो थकावट दूर हुई सी मालूम होती है वह उस अवस्था से अधिक खतरनाक होती है जो चाय पीने से पहले थकावट की हालत मनुष्य की रहती है। कारण, थकावट में जब चाय पी जाती है तो वह अपने मादक गुण से हमारे सजग मस्तिष्क के ज्ञान तन्तुओं पर अपना विषवत् प्रभाव डालकर उनकी अनुभव करने वाली शक्तियों को सुला देती है जिससे अपनी थकावट की बात भूलने के लिए बाध्य होते हैं। पर उस अवस्था में यह न समझना चाहिए कि थकावट वास्तव में चली गयी होती है। उस समय दरअसल चाय थकावट को दूर नहीं करती अपितु उस पर पर्दा डाल देती है।
वस्तुतः चाय विषों की खान होने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। चाय के सेवन से शरीर दिन-ब-दिन कमजोर होता चला जाता है, कब्ज रहने लगता है, शरीर का रंग पीला पड़ जाता है तथा नींद हराम हो जाती है जिससे मस्तिष्क के अनेक रोग आ घेरते हैं। इतना ही नहीं चाय का व्यवहार फेफड़ों, दिल, अंतडि़यों के लिए भी बहुत हानिकारक है और इसके पीने से भूख का मर जाना तो मामूली बात है।
आज दुनिया के सारे चिकित्सक यह मानते हैं कि चाय में शरीर के लिए कोई पोषक तत्व नहीं है और यह भी कि इसके सेवन से मन और शरीर पर बहुत असर पड़ता है, फिर भी इसका सेवन अन्धाधुन्ध हो रहा है। चाय आमतौर पर गर्म ही पी जाती है। जब यह चाय उदर में प्रवेश करती है तो उदर-कोष की भित्तियों को नुकसान पहुँचाती है।
चाय द्वारा नाड़ी मण्डल के विकृत होने पर मस्तिष्क विकृत हो जाता है, फिर भ्रान्ति की उत्पत्ति होती है, तत्पश्चात् मानसिक भ्रान्तियों में व्यस्त रहने की प्रेरणा होती है और अन्त में जीवन की कटु यथार्थताओं से पलायन करने का चस्का स्थायी रूप से उत्पन्न हो जाता है।
चाय के सेवन से शरीर की जीवन शक्ति का क्षय हो जाता है कारण-चाय पीने से फेफड़ों द्वारा कार्बोलिक एसिड गैस का निष्कासन अधिक होता है जो इस बात का द्योतक है कि जीवनी शक्ति का क्षय अधिक हो रहा है। जीवन शक्ति के इस प्रकार के क्षय से बुढ़ापा शीघ्र आता है। चाय पीने से पाचन शक्ति कुण्ठित हो जाती है। गर्म चाय से पेट के भीतरी अवयव शिथिल पड़ जाते हैं जिससे पाचन का काम अधिकांशतः ठप्प पड़ जाता है तथा वायु में पाये जाने वाले ’’टेनिन’’ विष द्वारा पित्त के प्रधान अंग ’’पेप्सिन’’ का व्यर्थ क्षय होने लगता है। इन कारणों से अजीर्ण, मन्दाग्नि तथा कोष्ठबद्धता जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं। चाय के साथ अतिरिक्त चीनी लेने से अक्सर लोगों को मधुमेह की बीमारी हो जाती है। चाय पीने वाल बहुधा वीर्य दोष, प्रमेह, बहुमूत्र तथा स्वप्न दोष आदि बीमारियों से घिरे रहते हैं।
चाय में पाये जाने वाले एक नहीं बल्कि अनेक तीव्र विषों का पता वैज्ञानिकों ने लगाया है। इन विषों में खास बात यह है कि इनका प्रभाव शरीर पर एकाएक नहीं पड़ता और न इनके तत्सम्बन्धी चिन्ह शरीर पर तुरन्त दृष्टिगोचर होते हैं, बल्कि इनका विषवत् प्रभाव शरीर के भीतरी अवयवों को धीरे-धीरे और चोर की भाँति आक्रान्त करता है। उसकी आँखे तब खुलती हैं जब चाय उसकी जीवन संगिनी बन चुकी होती है और उसके स्वास्थ्य का दिवाला पिट चुका होता है।
’’टेनिन’’या ’’टेनिज’’ वह मसाला या जहर है जो साधारण तौर पर चमड़े को अधिक दबीज या चिकना करने के लिए चमड़े के कारखानों में व्यवहृत होता है। दूसरा विष जो चाय में पाया जाता है वह ’’कैफिन’’ है। यह प्रभाव में मदिरा और तम्बाकू में पाये जाने वाले तीव्र विष ’’निकोटिन’’ के सदृश होता है। आमतौर से एक प्याले चाय में 5 ग्रेन के लगभग कैफिन होता है। इस विष से दिल की धड़कन एकाएक बन्द होकर आदमी मर भी जाता है। डाक्टर एडवर्ड स्मिथ ने अनुभव करने के लिए स्वयं दो औंस कहवा के सत्व को, जिसमें लगभग सात ग्रेन कैफिन रही होगी, पीया और वे बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। इसलिए डाक्टर लोग जब कैफिन विष को जब दवाई के रूप में देते हैं तो इसकी मात्रा दो या तीन ग्रेन से अधिक नहीं होती। इसका सबसे बुरा असर स्नायुओं और वातस्थान पर पड़ता है जिससे अनिद्रा और मन को अशान्ति पैदा होती है।
जिनको धुन्ध रोग है,ग्लोकोमा अथवा कोई अन्य नेत्र सम्बन्धी रोग हैं उनके लिए तो चाय, काफी जहर के समान हैं। आँख की पुतली के अन्दरूनी सेहत पर दबाव पड़ने से, कैफिन लेते रहने से नाडि़याँ उत्तेजित हो जाती हैं, फलस्वरूप दबाव में तीव्रता आती है। चाय में एसिड आक्जैलिक नाम का विष होता है। शरीर में से दिन भर में यह जितना निकलता है उसका चैगुना एक प्याले चाय में होता है। इसके अतिरिक्त कैफिन रक्तचाप को बढ़ाती है। आज जो हृदय और रक्तवाहिनियों के रोगों की बाढ़ देखी जा रही है, उसका विशेष कारण चाय या काफी का पान ही है।
चाय सम्बन्धी एक तथ्य जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। जिस जमीन पर जिस खेत में चाय की खेती होती है उस जमीन की उपजाऊ शक्ति दिन-ब-दिन क्षीण होती जाती है और कालान्तर में वह जमीन एकदम से बंजर हो जाती है उसमें किसी बीज के उत्पन्न करने की शक्ति नहीं रह जाती। जो चाय खेत को ऊसर और शक्तिहीन बना सकती है वह मात्र साढ़े तीन हाथ के इस मानव शरीर को स्वस्थ व शक्तिशाली कैसे बनायेगी ?
आज राष्ट्रीय हित को छोड़कर व्यापारिक दृष्टि से लाभप्रद व्यवसाय होने के नाते एवं सरकार को विशाल आय देने वाले व्यापार के कारण भारत में नशीली और जहरीली चाय का व्यापार दिन दूना रात चैगुना बढ़ रहा है। यह आवश्यक हो गया है कि राष्ट्रीय हित के लिए इसका व्यापार, प्रचार, और प्रसार तुरन्त रोक देना चाहिए।
अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी, लेकिन इसका चलन इतना गहरा हो चुका है कि सब समझने के बावजूद इसके सेवन मे कमी आने की आशा क्षीण है
ReplyDeleteठीक है चाय भी छोड़ दें ?
ReplyDeleteबिल्कुल, पकड़ रखी है तो छोड़ देनी ही उचित होगी।
ReplyDeleteविस्तृत और जानकारी परक पोस्ट
ReplyDeleteप्रणाम
जी प्रणाम और शुक्रिया।
ReplyDeleteजी प्रकार और आभार।
ReplyDeleteबहुत खूब
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